नेपाल युवा विरोध: सोशल मीडिया बैन और भ्रष्टाचार के खिलाफ उठी जन Z की गूंज ने सत्ता हिला दी ।

मुख्य खबर

नेपाल में सोशल मीडिया प्रतिबंध और व्यापक भ्रष्टाचार के खिलाफ युवा-नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शनों ने हिंसक रूप ले लिया, जिनमें कम से कम 19 मौतें और सैकड़ों घायल होने की पुष्टि के बाद प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने पद छोड़ दिया, जिससे काठमांडू समेत कई शहरों में कर्फ्यू और सेना की तैनाती करनी पड़ी । सुरक्षा बलों की गोलाबारी, पानी की बौछार और आंसू गैस के बीच संसद भवन, सरकारी परिसरों और वरिष्ठ नेताओं के आवासों पर आगजनी व तोड़फोड़ की घटनाएं दर्ज हुईं, जिन्हें युवाओं ने “भ्रष्टाचार ख़त्म करो” और “आवाज़ मत दबाओ” जैसे नारों से जोड़ा ।

विरोध क्यों भड़का?

सरकार द्वारा फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप समेत 26 सोशल प्लेटफॉर्म्स पर अस्थायी प्रतिबंध ने युवाओं में आक्रोश भड़काया, जिसे उन्होंने अभिव्यक्ति पर अंकुश और भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलन दबाने की कोशिश बताया । लंबे समय से बेरोज़गारी, असमानता और सत्तारूढ़ वर्ग के परिजनों की शानो-शौकत (नपो किड्स ट्रेंड) से जुड़ा गुस्सा सोशल मीडिया बैन के बाद फूट पड़ा, जिससे शांतिपूर्ण रैली हिंसा में बदल गई ।

जन Z की भूमिका

यह आंदोलन नेतृत्व-विहीन लेकिन डिजिटल-संगठित रहा, जिसमें 13–28 आयु वर्ग के छात्र-छात्राएं, कॉलेज-स्कूल यूनिफॉर्म में, काठमांडू, पोखरा और अन्य शहरों से सड़कों पर उतरे । युवाओं ने मांग रखी कि सोशल मीडिया बैन पूरी तरह हटे (बाद में वापस लिया गया) और प्रणालीगत भ्रष्टाचार व सिफ़ारिश संस्कृति पर कड़ी कार्रवाई हो ।

हिंसा और हताहत

ह्यूमन राइट्स वॉच के अनुसार 8 सितंबर को पुलिस की घातक गोलीबारी में कम से कम 19 लोगों की मौत और 300+ घायल हुए, जिससे सुरक्षा बलों की जवाबदेही और निष्पक्ष जांच की मांग तेज हुई । संसद और सर्वोच्च न्यायालय सहित प्रतीकात्मक संस्थानों पर आगजनी, वीआईपी आवासों पर हमले और शहरभर में झड़पें हुईं, जिसके बाद हवाई अड्डे बंद करने और कर्फ्यू के कदम देखने को मिले ।

राजनीतिक असर

लगातार दबाव और उग्र स्थिति के बीच कई मंत्रियों के बाद प्रधानमंत्री ओली ने भी इस्तीफ़ा दिया, जिससे सत्ता-शून्य और संवैधानिक समाधान पर चर्चा तेज हुई । सेना ने शांति की अपील के साथ सड़कों पर गश्त शुरू की और राजधानी में अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लागू किया, ताकि स्थिति को सामान्य किया जा सके ।

सरकारी रुख बनाम सार्वजनिक भरोसा

सरकार का तर्क रहा कि सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़, घृणा-भाषा और ऑनलाइन ठगी रोकना ज़रूरी है, पर व्यापक यूज़र-बेस और डिजिटल आजीविका के बीच प्रतिबंध ने विश्वास-घाटे को बढ़ाया । विरोधियों का कहना है कि असली मुद्दा वर्षों से चला आ रहा कथित भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और अवसरों की कमी है, जिसे अब युवा खुलकर चुनौती दे रहे हैं ।

आगे क्या?

युवाओं का कहना है कि “नेपाल युवा विरोध” तब तक थमेगा नहीं जब तक पारदर्शिता, जवाबदेही और रोज़गार-केंद्रित आर्थिक सुधारों पर ठोस रोडमैप नहीं बनता । विशेषज्ञ मानते हैं कि डिजिटल अधिकारों की गारंटी, पुलिस बल की जवाबदेही और समावेशी संवाद ही स्थायी समाधान की कुंजी है ।

जमीनी हालात और सलाह

भारत के लिए यात्रा सलाहकारियों में नेपाल की स्थितियों को देखते हुए अनावश्यक यात्रा टालने, सीमा चौकियों पर सतर्कता और स्थानीय निर्देश मानने की सलाह दी गई है । फिलहाल, काठमांडू और आसपास कर्फ्यू, इंटरनेट/सोशल मीडिया पहुंच में बाधाएं और सुरक्षा जांच सख्त हैं ।

संदर्भ प्रसंग

विकिपीडिया सार-संक्षेप बताता है कि 2025 के “जन Z विरोध” सोशल मीडिया बैन की चिंगारी से शुरू होकर शासन-व्यवस्था, पारदर्शिता और राजनीतिक जवाबदेही जैसे बड़े मुद्दों तक फैल गए, और 9 सितंबर को पीएम के इस्तीफ़े तक पहुंच गए । अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स ने आंदोलन की व्यापकता, डिजिटल मोबलाइज़ेशन, और प्रतीकात्मक संस्थानों पर हमलों को केंद्र में रखा है ।

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